देश में औरत की गरिमा पर आँच लगानेवाली इतनी तादाद में घटनाएँ होने के बावजूद लोग इससे कोई सबक नहीं सिख रहे है. अश्लील हरकतों से आज भी औरत को जलील करने का काम खुले आम हो रहा है और यह किसी गाँव कसबे में नहीं बल्कि मुंबई जैसे महानगर में भी हो रहा है. मुंबई के मालाड इलाके में आज एक राह चलता आदमी उसके आगे चल रही लड़की को पोर्न विडिओ दिखा रहा था. पहले तो उस लड़की ने ध्यान नहीं दिया लेकिन वो आदमी जब बाज़ नहीं आया तो लड़की ने अपना महाकाली वाला रूप दिखाया. कुछ रहगुजरो ने उस आदमी को धर दबोचा तब उसे अपनी नानी याद आ गयी थी. लड़की ने पुलिस को फ़ोन लगाया और उनके आने तक भीड़ ने उस आदमी को पकड रखा. लड़की को “बहिन” “दीदी” पुकार कर माफ़ी मांगने लगा. २-४ थप्पड़ पड़े तो बोलने लगा की “मुझे मारो लेकिन पुलिस में मत दो. मेरी बेटी बीमार है, मै आज़मगढ़ चला जाऊंगा” लड़की ने उससे कहा की “बेटी बीमार है और तुम रस्ते पर चलने वाली लड़कियों को गंदे विडिओ दिखाते हो? शर्म नहीं आयी? या तब भी बेटी को भूल गए थे. रुक तेरे बाप आ रहे है, वही तुमको भेजेंगे जहाँ भेजना है.” थोड़ी देर बाद पुलिस आए और वो उसे ले गए.
पुलिस उसके साथ क्या सुलुख करेगी वो बाद की बात है, सवाल यह है की यह सब बंद होगा या और बढेगा ? जहाँ लोग लड़की को तकलीफ देते वक़्त, उसके साथ अश्लील हरकते करते वक़्त विडिओ लेते है और उसे वायरल भी कर देते है. क्या इससे यह साबित नहीं होता की वो दिखाना चाहते है की ‘देखो, हम जो चाहे कर सकते है, कोई हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकता.’
कानून का डर तो ख़तम हो ही गया है, लेकिन लोग अपने घर की औरतों से, उनकी गरिमा से भी नहीं डरते ? इसके लिए कानून को सख्त बनाने की बात कुछ लोग करते है. लेकिन जो कानून अभी अस्तित्व में है उसी को पूरी तरहा से लागु किया जाये तो यह चीजे कम होते होते बंद हो सकती है. जरुरत है की जो लोग बलात्कार, यौन उत्पीडन के मामले में पकड़े जाते है उनको किसी भी तरहा की सहानुभूति न दिखाते हुए सजा दी जाये. कई घटनाओ में सुबूत ना मिलने पर आरोपी छुट जाते है. उन घटनाओ में भी पर्याप्त सुबूत होते है लेकिन अगर आरोपी कानून के रक्षकों को किसी तरहा से प्रभावित करने में सफल हो जाता है तो उस पीड़ित को न्याय नहीं मिलता. यह प्रभावित करना और होना जिस दिन बंद होगा उस दिन लडकिया अपने आप को महफूज महसूस करेगी.